1.
बेटों की बदचलनी पर भी खेद नहीँ करती।
घर आँगन की मर्यादा में छेद नहीँ करती।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई कौन पराया है,
भारत माँ बेटोँ बेटों में भेद नहीं करती।
- योगेन्द्र शर्मा
2.
शहीदों शूरवीरों की शहादत याद आती है।
गज़ब क्या लोग थे वो बादशाहत याद आती है।
लुटादी जान तक अपनी जिन्होंने देश की ख़ातिर,
वतन से उन शहीदों की मुहब्बत याद आती है।
- योगेन्द्र शर्मा
3.
सावरकर के चित्रों को जो नौंच रहे दीवारों से।
चित्रों के मोहताज नहीं हम कहदो उन गद्दारों से।
दीवारों से चिन्हों का अहसास मिटाना मुश्किल है।
स्वातंत्र्यवीर के कदमों का इतिहास भुलाना मुश्किल है।
- योगेन्द्र शर्मा
4.
जब वतन की अस्मिता ही
डोलती हो लक्ष्य खोकर,
शब्द शर से लक्ष्य का
संधान कविता है सुनो।
क्षीर सागर के मथन से
गरल का प्राकट्य हो तब
सृष्टि के कल्याण हित
विषपान कविता है सुनो।
मांस नौचे धर्म का ही
जब अधर्मी गिद्द बनकर,
धर्म रक्षा के स्वरों का
गान कविता है सुनो।
सागरों के शान्त मन में
ज्वार का उन्माद भरकर
शब्द शक्ति जागरण
अभियान कविता है सुनो।
- योगेन्द्र शर्मा
5.
जब वतन की अस्मिता ही
डोलती हो लक्ष्य खोकर,
शब्द शर से लक्ष्य का
संधान कविता है सुनो।
क्षीर सागर के मथन से
गरल का प्राकट्य हो तब
सृष्टि के कल्याण हित
विषपान कविता है सुनो।
मांस नौचे धर्म का ही
जब अधर्मी गिद्द बनकर,
धर्म रक्षा के स्वरों का
गान कविता है सुनो।
सागरों के शान्त मन में
ज्वार का उन्माद भरकर
शब्द शक्ति जागरण
अभियान कविता है सुनो।
- योगेन्द्र शर्मा
6.
वो चला द्रुत वेग से अरि छातियों को चीरता।
झुक गया अम्बर पगों में देख उसकी वीरता।
भारती का लाल अब्दुल दुश्मनों काल था।
सच कहूँ तो सिंहनी के दूध का दिक्पाल था।
आज तो उसकी रगों में आँधियों सा वेग था।
फड़फड़ाते बाजुओं में जोश का अतिरेक था।
थामकर गन हाथ में जब मुट्ठियाँ कसने लगीं।
पाक पैटन टैंकरों की धज्जियाँ उड़ने लगीं।
- योगेन्द्र शर्मा
7.
हैवानों को प्रीत प्यार के गीत सुनाना बंद करो।
धूर्त दरिंदों की बस्ती में आना जाना बंद करो।
अब तो उस कुत्ते की दुम से हाथ मिलाना बंद करो।
क्षमादान दे देकर अपने शीश कटाना बंद करो।
हम भारत के स्वाभिमान पर अपना लहू बहाते हैं।
जब तक प्राण रहे तन में हम गीत वतन के गाते हैं।
पर सत्ता के गलियारों में सब कुर्सी के हैं कायल।
कोई दर्द नहीं उनको जब भारत माता है घायल।
शांतिवार्ता की भाषा के सदा उलट अंजाम हुए।
हरदम धोखे खाए हमने सैनिक भी कुर्बान हुए।
बादशाह पर नज़र उठाई वहशी कायर प्यादों ने।
कितने दंश दिए भारत को जिन्ना की औलादों ने।
शांतिवार्ता छोड़ो दिल्ली शस्त्रों का संधान करो।
सेना को आदेश थमा रणचंडी का आह्वान करो।
जो आँख उठे भारत पे कसम राम की आँख फोड़दो।
ले नापाक़ इरादे जो हाथ उठे तो हाथ तोड़दो।
मातृभूमि पर घात बने बकरों को ऐसा झटका दो।
उनके जिन्दा शीश काटकर लाल किले पर लटका दो।
गाँडीव उठालो अर्जुन फिर समर महाभारत करदो
लाहौर कराँची पिंडी सारा भारत ही भारत करदो।
दहशतगर्दों की फाँसी ने देशद्रोह के फन कुचले।
लेकिन इन घटनाओं पर भी ग़द्दारों के मन मचले।
ग़द्दारों के बहने वाले आंसू तो घड़ियाली हैं।
देश विभाजन के मंसूबे महज पुलाव ख़याली हैं।
सोने वाली चिड़िया के अब पंख नहीं झड़ने देंगे।
मिट जाएंगे लेकिन इसका मान नहीं घटने देंगे।
मस्तक भारत माता का हम कभी नहीं कटने देंगे।
ये सपने छोड़ो ग़द्दारों हम देश नहीं बँटने देंगे।
जो लोग दरिन्दों की फाँसी को नाजायज़ बतलाते हैं।
गीदड़ भभकी दे भारत के शेरों को धमकाते हैं।
उनका पारा आसमान में चढ़ता है तो चढ़ जाए।
ग़द्दारों का गुस्सा बेशक बढ़ता है तो बढ़ जाए।
लेकिन गीदड़ भभकी सुनकर दिग्गज डोल नहीं सकते।
भारत की धरती पर तुम ये भाषा बोल नहीं सकते।
आस्तीन में साँप पालना हमको अब स्वीकार नहीं।
हिंदुस्तान में ग़द्दारों को जीने का अधिकार नहीं।
पृथ्वीराज की भूलों वाले पन्ने वापस मत खोलो।
शूल बिछे आँगन में हरगिज़ अंधे होकर मत डोलो।
धूल चटादो गिद्दों को जो घर में घुसकर घात करे।
जीभ काटलो कुत्तों की जो काश्मीर की बात करे।
हल्दीघाटी पर अंकित उन गाथाओं को याद करो।
तरुणाई में देशभक्ति का ज्वार उठे वो बात करो।
ज़िंदा करदो भारत माँ के मरते स्वाभिमान को।
बिना चुनौती दिए मसल दो सरहद के शैतान को।
या तो मस्तक लौटाकर दो अपने हिंदुस्तान का।
या दुनिया से नाम मिटादो वहशी पाकिस्तान का।
- योगेन्द्र शर्मा
8.
हिंद की जय हिंद की जय शोर चारों ओर था।
घन विभेदी गर्जना का दौर भी घनघोर था।
क्या गज़ब दीवानगी थी क्या गज़ब उन्माद था।
पाक की मुरदानगी पर हिन्द ज़िन्दाबाद था।
युद्ध सरहद पर छिड़ा ये रेडियो बोला अभी।
चल दिया संकल्प लेकर युद्ध में हम्मीद भी।
साथियों को ध्वंस के रणगीत गाते देखकर।
सरज़मीं पर पाक पैटन टैंक आते देखकर।
आसमांसी तन गयी थी आज उसकी भृकुटियाँ।
सुर्ख़ रक्तिम हो उठी थी चक्षुओं की पुतलियाँ।
हौसले थे तुंग हिम्मत के शिखर भी चढ़ गया।
देश रक्षा के लिए हम्मीद आगे बढ़ गया।
वो चला द्रुत वेग से अरि छातियों को चीरता।
झुक गया अम्बर पगों में देख उसकी वीरता।
भारती का लाल अब्दुल दुश्मनों काल था।
सच कहूँ तो सिंहनी के दूध का दिक्पाल था।
आज तो उसकी रगों में आँधियों सा वेग था।
फड़फड़ाते बाजुओं में जोश का अतिरेक था।
थामकर गन हाथ में जब मुट्ठियाँ कसने लगीं।
पाक पैटन टैंकरों की धज्जियाँ उड़ने लगीं।
गीदड़ों की टोलियों में ख़ौफ़ सा छाने लगा।
आज तो यमराज अब्दुल मौत बरसाने लगा।
दुश्मनों के जिस्म गाजर मूलियों से कट गए।
पाक के वहशी दरिन्दे बोटियों में बँट गए।
त्रस्त बुज़दिल बैरियों के हौसले ही पस्त थे।
सात पैटन टैंक उनके सामने ही ध्वस्त थे।
काल का विकराल तांडव फिर शुरू होने लगा।
पर उसी पल एक गीदड़ अनवरत रोने लगा।
चूड़ियाँ टूटी कहीं पर अपशगुन होने लगा।
रुद्ध घायल तृषित अब्दुल चेतना खोने लगा।
चक्षुओं की लालिमा पर कालिमा सी छा गयी।
यूँ लगा हम्मीद को माँ सामने ही आ गयी।
याद है माँ ने कहा था पीठ दिखलाना नहीं।
दूध की सौगंध तुमको हारकर आना नहीं।
शान हिन्दुस्थान की बेटा तुम्हारे हाथ है।
हौसले से युद्ध लड़ना माँ तुम्हारे साथ है।
एक साथी ने सुझाया जीप को मोड़ें अभी।
वक़्त की आवाज सुनकर मोरचा छोड़ें अभी।
वीर बोला मर मिटूँगा मैं वतन की शान पर।
आँच भी आने न दूँगा भारती के मान पर।
मौत ही तो जिंदगी का आख़री अंजाम है।
पीठ दिखलाना समर में कायरों का काम है।
अस्मिता के प्रश्न पर तो प्राण भी लव लेस है।
मातृभू माँ भारती का कर्ज मुझ पर शेष है।
आज वेला आ गयी निज प्राण के बलिदान की।
रक्त से रोशन करूँ रण-ज्योति हिन्दुस्थान की।
ये दुआ माँगी ख़ुदा से धीर था रणधीर में।
हाथियों सा बल समाहित हो गया फिर वीर में।
शेर सी हुंकार करके वो हिमालय बन गया।
दुश्मनों का काल फिर से मोरचे पर ठन गया।
पर ख़ुदा को आज तो कुछ और ही मंजूर था।
आज शायद काल के वश काल भी मजबूर था।
दनदनाता एक गोला वीर से टकरा गया।
आग की लपटें उठीं आकाश भी थर्रा गया।
एक पन्ना जुड़ गया इतिहास में बलिदान का।
शीश ऊँचा कर गया हम्मीद हिन्दुस्थान का।
रेडियो की घोषणा से स्तब्ध पूरा देश था।
ग़मज़दा ग़मगीन उसके गांव का परिवेश था।
धामपुर की धूल माटी ताल नदियाँ रो पड़ीं।
हर जवाँ बूढ़ी निग़ाहें गाँव गलियाँ रो पड़ीं।
वो पिता का प्यार बोला क्या ख़बर आई अभी।
मर नहीं सकता हमीदा झूठ मत बोलो सभी।
गिर पड़ी बीबी रसूलन चूड़ियों को तोड़कर।
जा नहीं सकते पिया तुम यूँ अकेली छोड़कर।
माँ लहू के आँसुओं की धार बनकर बह गयी।
घातकी आघात को चट्टान बनकर सह गयी।
सूरमा की शेरनी माँ क्या ग़ज़ब ही कह गयी।
पीठ पर भी घाव है क्या पूछती ही रह गयी।
कोख़ तेरी धन्य है माँ नूर चाचा ने कहा।
वीर अब्दुल का लहू तो देश की ख़ातिर बहा।
कौन कहता है जहाँ में लाल तेरा मर गया।
धामपुर की धूल का भी भाल ऊँचा कर गया।
धन्य है बलिदान तेरा तू वतन की शान है।
धन्य तेरी मौत पर ये ज़िन्दगी कुर्बान है।
वो दिलेरी धन्य तेरी देश को अभिमान है।
वीरता का चक्र देकर धन्य हिन्दुस्थान है।
यूँ कहो तो मौत क्या है ज़िन्दगी की शाम है।
पर तुम्हारी मौत भी ज़िन्दादिली का नाम है।
अब उसी ज़िन्दादिली से ये वतन आबाद है।
तू सुपुर्दे ख़ाक तेरा नाम ज़िंदाबाद है।
- योगेन्द्र शर्मा